मतदान करने के पूर्व एक चिंतन

इस सम्बन्ध में " महाभारत " में एक प्रसंग आता है- युद्ध समाप्त होने के बाद श्री कृष्ण से पूछा गया कि पांडवो को जीताने के लिए आपने झूठ क्यों  बोलाआपने शस्त्र नही उठाने की प्रतिज्ञा को क्यू  तोड़ा । 

आखिर आपने ऐसा क्यों किया ?  तो श्रीकृष्ण ने बड़ा सुंदर जवाब दिया!  उन्होंने कहा कि मेरे लिए कौरव और पांडव  दोनो समान हैं, पर मैने पांडवो को नही , हस्तिनापुर को जिताया। मैं जानता था कि कौरवों की तरफ सभी खराब लोग नहीं हैं और पांडव की तरफ सभी अच्छे लोग नहीं थे , पर यदि कौरव जीतते तो सत्ता दुर्योधन के हाथ में चली जाती और वह वही करता जो उसके लिए अच्छा होता । 

लेकिन पांडव जीतते  तो सत्ता  का अधिकार " युधिष्ठिर " के हाथ में होता  जिसके लिए स्वहित से बड़ा देशहित है इसलिए मैने पांडवो को नही जिताया हस्तिनापुर को जिताया अर्थात देश को जिताया।

            हमें भी भगवान कृष्ण की तरह सत्ता युद्धिष्ठिर जैसे व्यक्ति के हाथ मे जाए जिसके लिए स्वहित से बड़ा देश हो। ऐसा विचार करते हुये मतदान करना चाहिए ।

हम सच्चे नागरिको का भी कर्तव्य है की देश को जिताये , देश के लिए कार्य करे और खुद के  अंदर कृष्णत्व को साक्षात अनुभव करें। 

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